आतंकवाद पर निबंध 500 शब्दों में | Essay on Terrorism in hindi

 आतंकवाद पर निबंध 500 शब्दों में 

राज्य या विरोधी वर्ग को दबाने के लिए भय उत्तपन करने वाले  उपायों का अवलंबन 'आतंकवाद' कहलाता है। राज्य सरकार, विरोधी वर्ग या जनता को झुकाने या प्रभावित करने के लिए भयोत्पादक उपायों का सहारा लेनेवाला आतंकवादी कहलाता है। 'आतंकवाद' से मिलता-जुलता एक शब्द 'उग्रवाद' है। पर, इन दोनों में अंतर है। सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, कानूनी जातीय तथा धार्मिक शोषणों से मुक्त होने के लिए की गई हिंसात्मक कार्रवाई 'उपवाद' कहलाती है। 'उग्रवाद' में शोषण के विरुद्ध संघर्ष होता है। 'आतंकवाद' में शोषण से मुक्ति की नहीं अपने प्रसार की कामना होती है। हिंसा के धरातल पर 'उग्रवाद' और 'आतंकवाद' एक से दिखाई पड़ते हैं, पर वास्तविकता यह है कि 'उग्रवाद' शोषण के विरुद्ध लाचारी में उठाया गया अमानवीय कदम है। तो 'आतंकवाद' अपने हठ को सबके माथे पर थोपने का हिंसात्मक पाशविक कृत्य। 


‘आतंकवाद' अतिवाद का घृणित रूप है। अतिवाद संकीर्ण मनोवृत्ति का परिचायक होता है। अतिवाद में विवेकहीन हठधर्मिता ही आतंकवाद की जननी होती है। आज सारा विश्व आतंकवाद को गिरफ्त में है। आज विश्व के हर देशों में आतंकवादी और उग्रवादी गतिविधियां  देखने को मिलती है।


भारत दो दशकों से आतंकवाद से जूझ रहा है। इसी 'आतंकवाद के चलते मई 1999 में पाकिस्तान के साथ भारत कारगिल में भिड़ा और 17 जुलाई को भारत ने विजय प्राप्त की। 23 जुलाई को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा-"युद्ध खत्म हो गया, पर लड़ाई जारी है।" यह लड़ाई आतंकवाद के साथ है। 


कश्मीर को हथियाने के लिए पाकिस्तान आए दिन आतंकवादी हथकंडे अपनाता है। सैनिक शिविरों में घुसकर बम विस्फोट करना, रॉकेट लांचरों से सैनिक शिविरों पर आक्रमण करना, भीड़-भाड़वाली जगहों पर बम विस्फोट करना, निर्दोष लोगों पर अंधाधुंध गोलियां चलाना, मानव-दमों से महत्त्वपूर्ण राजनेताओं को मारने की साजिश करना, संसद भवन में घुसने का दुस्साहस करना आदि आतंकवादी गतिविधियों से पाकिस्तान भारत पर दबाव बनाने की लगातार कोशिश करता रहा है। पर, भारत भी अपने संकल्प में दृढ़ है। कश्मीर समस्या का निदान केवल "शिमला समझौता' और 'लाहौर वार्ता के आधार पर ही हो सकता है भारत का यह अडिग संकल्प अत्यंत सराहनीय है। 'आतंकवाद' दबाव का सिद्धांत है, जिसके द्वारा अपने हठ को दूसरों के ऊपर थोपा जाता है। भारत 'आतंकवाद' के विरुद्ध सारे विश्व को सजग करता रहा, पर शक्ति और शौर्य के मद में भूले राष्ट्रों के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर जब हमला हुआ तब अमेरिका की आँखें खुलीं। उसने तालिवानों को नष्ट करने की शपथ खाई और अपने अथक प्रयासों से उसने अफगानिस्तान को आतंकवादी चंगुल से मुक्त किया। आज अमेरिका सारे विश्व से आतंकवाद को खत्म करने की बात करता है, पर यह तो भविष्य ही बताएगा कि वह आतंकवाद को नष्ट करने में सफल होगा या नहीं। लेकिन, यह भी सत्य है कि यदि विश्व के सारे राष्ट्र आतंकवाद को दूर करने का दृढ़ संकल्प ले ले तो आतंकवाद को जड़ से उखाड़ने में ज्यादा देर नहीं लगेगी। आतंकवादी संगठनों का केंद्रीय स्थल सबको ज्ञात है, पर दृढ़ इच्छा शक्ति के अभाव में उसपर सही समय पर आक्रमण नहीं हो पा रहा है। 2008 में मुम्बई में हुए आतंकवादी हमले को समाप्त करने के लिए अपनी राजनीतिक तथा कूटनीतिक सक्रियता प्रदर्शित की है। यह अच्छी बात है।


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