भाषा किसे कहते हैं | परिभाषा | प्रकार | विविध रूप
भाषा की परिभाषा:
भाषा वह साधन है, जिसके द्वारा हम बोलकर, सुनकर, लिखकर व पढ़कर अपने मन के भावों या विचारों का प्रकट करते तथा उसका आदान-प्रदान करता है।
अथवा
जिसके द्वारा हम अपने भावों को लिखित अथवा बोल कर दूसरों को समझा सके और दूसरों के भावो को समझ सके उसे भाषा कहते है।
अथवा
सरल शब्दों में: सामान्यतः भाषा मनुष्य की सार्थक व्यक्त वाणी को कहते है।
बोली और भाषा में अन्तर
अगर देखा जाये तो बोली और भाषा दोनों का इस्तेमाल विचारों को व्यक्त करने के लिए किया जाता है, परन्तु बोली और भाषा दोनों में अंतर है।
(i) भाषा का क्षेत्र व्यापक होता है जबकि बोली का क्षेत्र सीमित होता है।
(ii) साहित्य की रचना भाषा में की जाती है, जबकि बोली को साहित्य में प्रयोग नहीं किया जाता है।
(iii) यदि बोली में साहित्य की रचना की जाये तो वो उपभाषा का रूप ले लेती है।
(iv) भाषा का प्रयोग आधिकारिक रूप से भी किया जाता है, जबकि आम बोलचाल में बोली का प्रयोग किया जाता है।
जब बोली इतनी विकसित हो जाती है कि वह किसी लिपि में लिखी जाने लगे, उसमें साहित्य-रचना होने लगे और उसका क्षेत्र भी अपेक्षाकृत विस्तृत हो जाए तब उसे भाषा कहा जाता है।
भाषा के प्रकार:
भाषा के तीन रूप होते है:
1.मौखिक भाषा
2. लिखित भाषा
3. सांकेतिक भाषा
(1) मौखिक भाषा :-
इस प्रकार, भाषा का वह रूप जिसमें एक व्यक्ति बोलकर विचार प्रकट करता है और दूसरा व्यक्ति सुनकर उसे समझता है, मौखिक भाषा कहलाती है।
दूसरे शब्दों में- जिस ध्वनि का उच्चारण करके या बोलकर हम अपनी बात दुसरो को समझाते है, उसे मौखिक भाषा कहते है।
जैसे जब कही वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है तो, प्रतियोगिता में वक्ताओं द्वारा बोलकर अपने विचार प्रकट किए जाते है तथा श्रोतायें सुनकर उनका आनंद उठाते है। यह भाषा का मौखिक रूप है। इसमें वक्ता बोलकर अपनी बात कहता है व श्रोता सुनकर उसकी बात समझता है।
उदाहरण: टेलीफ़ोन, दूरदर्शन, भाषण, वार्तालाप, नाटक, रेडियो आदि।
मनुष्य ने जब से इस धरती पर जन्म लिया होगा तभी से उसने बोलना प्रारंभ कर दिया होगा, इसलिए यह कहा जाता है कि भाषा मूलतः मौखिक है।
मौखिक भाषा की कुछ प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
(1) मौखिक भाषा, भाषा का अस्थायी रूप है।
(2) उच्चरित होने के साथ ही यह समाप्त हो जाती है।
(3) जब बोलने वाला और सुनाने वाला एक-दूसरे के आमने-सामने हों, तभी मौखिक भाषा का प्रयोग किया जा सकता है।
(4) इस रूप की आधारभूत इकाई ‘ध्वनि’ है। विभिन्न ध्वनियों के संयोग से शब्द बनते हैं जिनका प्रयोग वाक्य में तथा विभिन्न वाक्यों का प्रयोग वार्तालाप में किया जाता हैं।
(5) यह भाषा का मूल या प्रधान रूप हैं।
(2) लिखित भाषा :-
अपने विचारों को लिखकर व्यक्त करना लिखित भाषा कहलाती है। अर्थात अपनी किसी बात को किसी तक लिखकर पहुँचाना ही लिखित भाषा कहलाती है।
इसे एक उदाहरण से समझते है, मुकेश दिल्ली में रहता है। उसने पत्र लिखकर अपने माता-पिता को अपनी स्थिति व जरूरतों की जानकारी दी। माता-पिता ने पत्र पढ़कर जानकारी प्राप्त की। यह भाषा का लिखित रूप है। इसमें एक व्यक्ति लिखकर विचार या भाव प्रकट करता है, दूसरा पढ़कर उसे समझता है।
इस प्रकार भाषा का वह रूप जिसमें एक व्यक्ति लिखकर अपने विचार या मन के भावप्रकट करता है और दूसरा व्यक्ति पढ़कर उसकी बात समझता है, लिखित भाषा कहलाती है।
दूसरे शब्दों में- जिन अक्षरों या चिन्हों की सहायता से हम अपने मन के विचारो को लिखकर प्रकट करते है, उसे लिखित भाषा कहते है।
उदाहरण: पत्र, लेख, पुस्तक, समाचार-पत्र, कहानी, तार आदि।
मौखिक भाषा की तुलना में लिखित भाषा का रूप बाद में आया है। मनुष्य को जब यह अनुभव हुआ होगा कि अपनी बातों को दूर के लोगों तथा आने वाली पीढ़ी को बताना होगा, तो उसे लिखित भाषा की आवश्यकता हुई होगी। अतः मौखिक भाषा को स्थाई रूप देने के लिए ‘लिखित-चिह्नों’ का विकास हुआ।
लिखित भाषा की कुछ प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
(1) लिखित भाषा, भाषा का स्थायी रूप है।
(2) लिखित भाषा के रूप में हम अपने भावों और विचारों को अनंत काल के लिए सुरक्षित रख सकते हैं।
(3) इसके लिए वक्ता और श्रोता का आमने-सामने होना जरुरी नहीं है।
(4) इस रूप की आधारभूत इकाई ‘वर्ण’ हैं जो उच्चरित ध्वनियों को अभिव्यक्त करते हैं।
(5) यह भाषा का गौण रूप है।
अतः भाषा का मौखिक रूप ही प्रधान या मूल रूप है। यदि किसी व्यक्ति को लिखना-पढ़ना (लिखित भाषा रूप) नहीं आता तो इसका मतलब यह नहीं कि उसे वह भाषा नहीं आती। बल्कि व्यक्ति को कोई भाषा आती है, इसका अर्थ है- वह उसे सुनकर समझ लेता है तथा बोलकर अपनी बात व्यक्त कर लेता है।
(3) सांकेतिक भाषा :-
संकेतो या इशारों के द्वारा अपनी बात दूसरों को समझाना, सांकेतिक भाषा कहलाती है।
दूसरे शब्दों में- जब संकेतों (इशारों) द्वारा बात समझाई और समझी जाती है, तब वह सांकेतिक भाषा कहलाती है।
जैसे- चौराहे पर खड़ा यातायात नियंत्रण करने वाला पुलिस संकेतों का प्रयोग करके यातायात नियंत्रित करता है। मूक-बधिर व्यक्तियों का वार्तालाप भी सांकेतिक भाषा में होती है।
सांकेतिक भाषा का अध्ययन व्याकरण में नहीं किया जाता।
भाषा का उद्देश्य:
भाषा का उद्देश्य है- भाषा का उद्देश्य विचारों का आदान-प्रदान करना है।
भाषा के उपयोग:
भाषा विचारों के आदान-प्रदान का सर्वाधिक उपयोगी साधन है। परस्पर मानव-समाज की सभी गतिविधियों में भाषा की आवश्यकता पड़ती है। सांकेतिक भाषा में भ्रांति अर्थात स्पष्ट रूप से न समझाने की संभावना रहती है, किन्तु भाषा के द्वारा हम अपनी बात स्पष्ट तथा बिना भ्रान्ति के दूसरों तक पहुँचा सकते हैं।
भाषा का लिखित रूप भी बहुत उपयोगी है। पत्र, पुस्तक, समाचार-पत्र आदि का प्रयोग हम दैनिक जीवन में करते हैं। भाषा के लिखित रूप होने के कारण ही आज हम पुस्तकें, दस्तावेज आदि लम्बे समय तक सुरक्षित रह सकते हैं। रामायण, महाभारत जैसे ग्रंथ तथा ऐतिहासिक शिलालेख आज तक भाषा के लिखित रूप के कारण ही सुरक्षित है।
हिन्दी भाषा के विविध रूप :
1 . बोलचाल की भाषा -
2 . मानक भाषा -
3 . सम्पर्क भाषा -
4 . राजभाषा -
5 . राष्ट्रभाषा -
1 . बोलचाल की भाषा -
सबसे पहले बोली के बारे में समझाना लेते है वो भाषा जो छोटे से और सीमित क्षत्रे तक ही इस्तेमाल की जाती है उसे बोली कहते है ‘बोली’ उन सभी लोगों की बोलचाल की भाषा का वह मिश्रित रूप है जिनकी भाषा में पारस्परिक भेद को अनुभव नहीं किया जाता है। लेकिन जब बोली का विस्तार बहुत बड़े क्षत्रे में हो जाता है अर्थात इसके बोलने वालों की संख्या बहुत अधिक हो जाती है तो वह बोली भाषा का रूप ले लेती है
2 . मानक भाषा -
भाषा का वह रूप जो उच्चारण, रूप-रचना, वाक्य-रचना, शब्द और शब्द-रचना, अर्थ, मुहावरे, लोकोक्तियाँ, प्रयोग तथा लेखन आदि की दृष्टि से, उस भाषा के सभी नहीं तो अधिकांश सुशिक्षित लोगों द्वारा शुद्ध माना जाता है। उसे मानक भाषा कहते है
3 . सम्पर्क भाषा -
सम्पर्क का अर्थ है जोड़ना अर्थात जिस भाषा के माध्यम से व्यक्ति-व्यक्ति, राज्य-राज्य तथा देश-विदेश के बीच सम्पर्क स्थापित किया जाता है उसे सम्पर्क भाषा कहते हैं। आज भारत में हिंदी सम्पर्क भाषा के रूप में प्रतिष्ठित होती जा रही है, जब की अंग्रेजी अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर सम्पर्क भाषा के रूप में प्रतिष्ठित हो चुकी है।
4 . राजभाषा -
राज्य सरकार द्वारा प्रशासनिक कार्यों को सम्पन्न करने के लिए जिस भाषा का प्रयोग किया जाता है, उसे राज्यभाषा कहते हैं। यह भाषा उस प्रदेश के अधिकांश समुदायों द्वारा बोली जाती है।
5 . राष्ट्रभाषा -
देश के सर्वाधिक हिस्से में बोली जाने वाली भाषा तथा जो सरकारी कर्मचारियों के लिए सहज और सुगम हो; जिसको बोलने वाले बहुसंख्यक हों और जो पूरे देश के लिए सहज रूप में उपलब्ध हो, उसे ही राष्ट्रभाषा कहते है।
राज्यों में बोली जाने वाली भाषाएँ :
बिभिन्न राज्यों में भिन्न-भिन्न भाषाएँ भी बोली जाती है जो निम्नलिखित है :
जम्मू एवं कश्मीर में कश्मीरी, डोगरी और हिन्दी है।
हिमाचल प्रदेश में हिन्दी, पंजाबी और नेपाली है।
हरियाणा में हिन्दी, पंजाबी और उर्दू है।
पंजाब में पंजाबी व हिन्दी है।
उत्तराखण्ड में हिन्दी उर्दू, पंजाबी और नेपाली है।
दिल्ली में हिन्दी, पंजाबी, उर्दू और बंगाली है।
"उत्तर प्रदेश में हिन्दी व उर्दू है।
राजस्थान में हिन्दी, पंजाबी और उर्दू है।
मध्य प्रदेश में हिन्दी,मराठी और उर्दू है।
पश्चिम बंगाल बंगाली हिन्दी, संताली, उर्दू, नेपाली है।
छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ी व हिन्दी है।
बिहार में हिन्दी, मैथिली और उर्दू हैं।
झारखण्डमें हिन्दी, संताली, बंगाली और उर्दू है।
सिक्किम में नेपाली, हिन्दी, बंगाली है।
अरुणाचल प्रदेश में बंगाली, नेपाली, हिन्दी और असमिया है।
नागालैण्ड में बंगाली हिन्दी और नेपाली है।
मिजोरम में बंगाली हिन्दी और नेपाली है।
असम में असमिया बंगाली, हिन्दी, बोडो और नेपाली है।
त्रिपुरा में बंगाली व हिन्दी है।
मेघालय में बंगाली, हिन्दी और नेपाली है।
मणिपुर में मणिपुरी, नेपाली, हिन्दी और बंगाली है।
ओडिशा में ओड़िया हिन्दी, तेलुगु और संताली है।
महाराष्ट्र में मराठी, हिन्दी, उर्दू और गुजराती है।
गुजरात में गुजराती, हिन्दी, सिन्धी, मराठी और उर्दू है।
कर्नाटक में कन्नड़ उर्दू, तेलुगू, मराठी और तमिल है।
दमन और दीव में गुजराती हिन्दी और मराठी है।
दादरा और नगर हवेली में गुजराती, हिन्दी, कोंकणी और मराठी है।
गोवा में कोंकणी मराठी, हिन्दी और कन्नड़ है।
आन्ध्र प्रदेश में तेलुगु उर्दू, हिन्दी और तमिल है।
केरल में मलयालम है।
लक्षद्वीप में मलयालम है।
तमिलनाडु में तमिल तेलुगू, कन्नड़ और उर्दू है।
पुडुचेरी में तमिल तेलुगू, कन्नड़ और उर्दू है।
अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह में बंगाली, हिन्दी, तमिल, तेलुगू और मलयालम है।
एक टिप्पणी भेजें
एक टिप्पणी भेजें