दहेज़: एक सामाजिक कलंक, या दहेज़ प्रथा एक अभिशाप
500 शब्दों में निबंध - दहेज़ प्रथाभूमिका:
दहेज प्रथा भारतीय जनता और समाज के माथे पर कलंक का सबसे बड़ा टीका है। इस दैत्य रूपी दहेज़ ने न जाने कितनी युवतियों को कुंवारी रहने पर मजबूर किया है, कितने घरों को बर्बाद किया है और न जाने कितनी कन्याएँ इसकी बलिवेदी पर जल मरी हैं।
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प्राचीन और वर्तमान स्वरूप और आधार:
वस्तुतः दहेज उसे कहते हैं जो पुत्री के विवाह में पिता की ओर से उपहार के रूप में दिया जाता है। पहले यह उपहार पिता अपनी इक्षा से पुत्री को देता था, जिसे यौतुक कहा जाता था, परन्तु आज इसे दहेज कहते हैं। इन दिनों इसके स्वरूप में, जरा अन्तर हो गया है। पहले यह दहेज बाध्यता नहीं थी लेकिन इन दिनों दहेज बाध्यता है या यों कहे की लड़के वाले इसे अपना अधिकार समझते है। दहेज के तय हो जाने पर ही विवाह किया जाता है। इस दहेज का आधार है लड़के के पिता की सम्पत्ति, लड़के की शिक्षा, नौकरी। इस पर यदि लड़का सुन्दर और गुणवान हो तो क्या कहना-जैसे सोने में सुहागा। लीजिए, जितना दहेज आप लेना चाहते हैं। लगवाइए बोली। बहुत से लोग तो अपने बच्चों को इसीलिए पढ़ाते हैं कि अधिक दहेज मिलेगा। आज दशा यह है कि दहेज का मूल्य तय है। मजिस्ट्रेट, डॉक्टर, इन्जीनियर, किरानी, चपरासी सबके भाव निश्चित हैं। स्पष्ट है कि दूल्हा बिकता है बाजार में बस बोली ठीक लगानी होगी।
दहेज का परिणाम :
सच्ची बात तो यह है कि दहेज अब प्रेम का उपहार नहीं, प्रतिष्ठा का सूचक है। जिसके पुत्र को जितना अधिक दहेज मिलता है, वह उतना ही अधिक प्रतिष्ठित माना जाता है। यही बात लड़की की ओर भी है। जो जितना अधिक दहेज देता है वह उतना ही इज्जतदार माना जाता है। इस प्रकार, दहेज का यह दानव दोनों ही पक्षों को समान रूप से खाता है। इस लालच में वधू पर अत्याचार भी होने लगा है। कभी-कभी तो ऐसा भी होता है कि मंवान्क्षित दहेज़ लड़के पक्ष को तो मिलता है परन्तु विवाह के पश्चात वे फिर से पैसे के लिए लड़की तो तंग करने लगते है। जिसका परिणाम बाद में घातक होता है। या तो पैसे के लालच में लड़की मार दी जाती है या लड़की खुद ही खुदखुशी कर लेती है।
निबंध : भारतीय किसान
सामाजिक कलंक :
वस्तुतः यह सामाजिक कलंक है। आज देश के इस कलंक को मिटाने की जरूरत है। यह ठीक है कि इसे मिटाने के लिए उपदेश दिए जाते हैं लेकिन 'मर्ज बढ़ता गया, ज्यों-ज्यों दवा की' की भाँति यह रोग बढ़ता ही गया है। सरकार ने भी कानून बनाए हैं जरूर, लेकिन कानून से ही सिर्फ कुछ होने वाला नहीं है। लोगों की मनोवृत्ति में परिवर्तन अत्यन्त आवश्यक है। इसके बिना कानून सिर्फ किताबों में रह जाएगा और आज तक यही हुआ है।
उन्मूलन एवं उपसंहार :
इस प्रथा को दूर करने के लिए नवयुवक-नवयुवतियों को ही आगे आना पड़ेगा और यह प्रण करना होगा कि वे दहेज न लेंगे और न देंगे, तभी यह कुरीति रुकेगी और नहीं तो यह दानव भारतीय समाज को एक दिन खोखला बनाकर छोड़ेगा। परिणाम होगा कि अनीतियाँ, व्यभिचार और हत्या तथा आत्महत्या के दलदल में फँसा यह भारतीय समाज सातल को चला जाएगा। हमारे माननीय मुख्यमंत्री ने भी दहेज प्रथा के प्रति कठोर कदम उठाते हुए सजा का प्रावधान किया है।
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