Essay on Global Warming in hindi 1800+ words - An Warming Topic | भूमंडलीय ऊष्मीकरण या ग्‍लोबल वॉर्मिंग पर हिंदी निबंध 1800+ शब्द |

global warming



 

Essay on Global Warming in Hindi - An Warming Topic

( भूमंडलीय ऊष्मीकरण या ग्‍लोबल वॉर्मिंग पर हिंदी निबंध - एक ज्वलन्त विषय)


Essay on Global Warming in Hindi निबंध में आज हमलोग चर्चा करेंगे आज के समय का सबसे ज्वलन्त विषय भूमंडलीय ऊष्मीकरण या ग्‍लोबल वॉर्मिंग के बारे में। खास कर इस तरह के निबंध परीक्षार्थियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। उम्मीद है की यह निबंध उन परीक्षार्थियों के लिए सहायक सिद्ध हो।  


सामग्री (Content)


    प्रस्तावना 


    सभी प्राणियों में मनुष्य सबसे श्रेष्ट प्राणी है। इसी श्रेष्ठता को साबित करने के लिए मनुष्य रोज नए-नए प्रयोग और अविष्कार कर रह है। परन्तु आगे बढ़ने के इस होड़ में वह प्रकृति के नियमो को तोड़ता जा रहा है। जिसका परिणाम निकट भविष्य में काफी विकराल और घातक होने वाला है। अगर हम वक़्त रहते नहीं संभले तो घातक परिणामों को भुगतने के लिए तैयार रहना होगा।

    क्या आपने कभी गौर किया है प्राकृतिक के बदलते मिजाज की ओर ! वक़्त पर वर्षा का न होना, जरुरत से ज्यादा गर्मी पड़ना, जमींन में पानी का स्तर कम होना, बिन मौसम बारिश होना, ठण्ड के मौसम की आयु का कम होना, जैसे बदलाव प्राकृतिक के मिजाज की ओर इशारा करते है।

    वैसे तो मनुष्य के पास प्राकृतिक से सम्बंधित बहुत समस्या है परन्तु उन सभी में सबसे गंभीर समस्या है, ग्‍लोबल वॉर्मिंग अर्थात  भूमंडलीय ऊष्मीकरण, जिससे केवल हमारा देश ही नहीं बल्कि पूरा विश्व घबडाया हुआ है। इस समस्या से ना केवल मनुष्य, बल्कि धरती पर रहने वाले प्रत्येक प्राणी को नुकसान पहुँच रहा है। चुकी इस समस्या के जनक हम मनुष्य ही है तो समाधान भी हमें ही खोजना होगा।


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    ग्लोबल वार्मिंग का अभिप्राय एवं अर्थ 



    चलिए अब समझते है की आखिर ये ग्लोबल वार्मिंग या  भूमंडलीय ऊष्मीकरण क्या है ?


    ‘ग्लोबल वॉर्मिंग’ अंग्रेज़ी शब्द है जिसके अर्थ को स्पष्ट किया जाये तो ग्लोबल का अर्थ है ‘सम्पूर्ण विश्व‘ तथा  वॉर्मिंग का अर्थ ‘गर्मी’अर्थात ‘ऊष्मा’ | अतः  ग्लोबल वॉर्मिंग या  भूमंडलीय ऊष्मीकरण की परिभाषा इस प्रकार होगी “धरती के वातावरण में तापमान में लगातार हो रही विश्वव्यापी बढ़ोतरी को ग्लोबल वॉर्मिंग कहते हैं।”


    ग्लोबल वार्मिंग में कार्बन डाइऑक्साइड गैस की भूमिका अहम् है क्यों की यह ऊष्मा अवशोषक गैस है। अतः दुसरे शब्दों में - जब वायुमंडल में कार्बन-डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है तो वायुमंडल के तापमान में बढ़ोतरी हो जाती है। तापमान में हुए इस बदलाव को ग्लोबल वार्मिंग कहते है।


    ‘ग्लोबल वॉर्मिंग’ के कारण पृथ्वी के तापमान में वृद्धि, मौसम में परिवर्तन, हिमखण्डों और ग्लेशियरों के पिघलने, समुद्र के जल-स्तर में वृद्धि जैसी घटनाएँ देखने को मिल रही है।


    भूमंडलीय ऊष्मीकरण या ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण


    ग्रीन हाउस गैस 


    ग्रीन हाउस गैस  भूमंडलीय ऊष्मीकरण का मुख्य कारण है। ग्रीन हाउस गैस के अंतर्गत आने वाले गैस है, कार्बन डाई आक्साइड, नाइट्रस आक्साइड, मीथेन, क्लोरो-फ्लोरो कार्बन इत्यादि है। पिछले 20 सालों में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में चालीस गुणा बृद्धि हुई है, एवं औद्यौगिकीकरण के बाद से इसमें 100 गुणा की बढ़ोत्तरी हुई है। यधपि कार्बन डाइऑक्साइड पृथ्वी के वातावरण को गर्म बनाये रखने के लिए जरुरी है परन्तु इसमें अत्यधिक बृद्धि पृथ्वी के वातावरण को गर्म बना देगा, जो इस धरती पर निवास करने वाले प्राणियों के लिए असहनिये होगा। 

    वैसे तो जीव श्वसन क्रिया द्वारा तो कार्बन डाइऑक्साइड उत्तपन करते  है, परन्तु अपनी सुविधा हेतु प्रयोग किये जाने वाले उपकरणों द्वारा भी इस तरह के गैस उत्तपन होते है। जैसे वातानुकूलक, फ्रिज, कार, स्कूटर इत्यादि। इसके अलावे कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन का सबसे बड़ा स्रोत पेट्रोलियम ईंधन और परंपरागत चूल्हे हैं।


    भारत में प्रयोग हो रही गैस हाइड्रो क्लोरो-फ्लोरो कार्बन सबसे हानिकारक ग्रीन हाउस गैस है जो कार्बन डाई आक्साइड की तुलना में एक हजार गुना ज्यादा हानिकारक है।


    पढ़े :- प्रदुषण एवं प्रकार


    प्रदुषण 


    यातायात के साधनों में हुई बृद्धि ने प्रदुषण को जन्म दिया है | वाहनों द्वारा उत्पन्न हानिकारक गैस स्वस्थ के लिए हानिकारक तो है ही साथ ही इससे उत्पन्न अनेक गैस वायुमंडलिये तापमान को बढ़ा रहे है।


    जनसंख्या वृद्धि


    जनसंख्या वृद्धि भी वायुमंडल के तापमान को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान देती है क्योंकि एक रिपोर्ट के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग में 90 प्रतिशत योगदान मानवजनित कार्बन उत्सर्जन का है।


    औद्योगीकरण


    नए-नए उद्द्योग की स्थापना जहाँ हमें रोजगार के अवसर प्रदान करते है, वहीँ इस कल-कारखानों से उत्पन्न विषैले एवं हानिकारक गैस वातावरण के तापमान को बढ़ाने का कार्य करते है।


    जंगलों की कटाई


    वन, जीवन का प्राणाधार है। परन्तु इसकी अन्धाधुन कटाई कर हम अपने जीवन को निराधार बनाने पर तुले है। वन जहाँ वर्षा कराने, मृदा अपरदन रोकने, तथा वातावरण की उष्णता बढाने वाले गैस कार्बन डाइऑक्साइड को ग्रहण कर हमे शुद्ध वातावरण प्रदान करते है। वहीँ हम अपने लाभों के लिए बिना सोचे- विचारे  इन्हें नष्ट किये जा रहे है। अतः जंगल कटाई भी ‘ग्लोबल वॉर्मिंग’ अर्थात  भूमंडलीय ऊष्मीकरण का मुख्य कारण है।


    ओजोन परत को नुकसान होना 


    वायुमंडल की अनेक परतों में एक परत है ओजोन। यह एक तरह से पृथ्वी का सुरक्षा कवच है। यह सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैगनी किरणों से हमारी रक्षा करती है। लेकिन वैज्ञानिकों के अनुसार इस परत में छिद्र होने की बात स्वीकार की गई है। जिससे वातावरण का ताप बढ़ रहा है तथा हिमखंड पिघल रहे है।


    उर्वरक और कीटनाशक


    खेतों में फसलों को कीड़ों से बचाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली उर्वरक और कीटनाशक पर्यावरण के लिए हानिकारक है। ये केवल मिट्टी को ही प्रदूषित नहीं करते बल्कि पर्यावरण में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड जैसी गैसों को छोड़ते हैं जो ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए ज़िम्मेवार हैं। 


    ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव


    (i) ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ने के कारण कुछ वर्षों में इसका प्रभाव बिल्कुल स्पष्ट हो चुका है। अमेरिका के भूगर्भीय सर्वेक्षणों के अनुसार, मोंटाना ग्लेशियर राष्ट्रीय पार्क में 150 ग्लेशियर हुआ करते थे लेकिन इसके प्रभाव की वजह से अब सिर्फ 25 ही बचे हैं।


    (ii) बड़े जलवायु परिवर्तन से तूफान अब और खतरनाक और शक्तिशाली होता जा रहा है। तापमान अंतर से ऊर्जा लेकर प्राकृतिक तूफान बहुत ज्यादा शक्तिशाली हो जा रहे है। 1895 के बाद से साल 2012 को सबसे गर्म साल के रुप में दर्ज किया गया है और साल 2003 के साथ 2013 को 1880 के बाद से सबसे गर्म साल के रुप में दर्ज किया गया।


    (iii) ग्लोबल वार्मिंग की वजह से बहुत सारे जलवायु परिवर्तन हुए है जैसे गर्मी के मौसम में बढ़ौतरी, ठंडी के मौसम में कमी,तापमान में वृद्धि, वायु-चक्रण के रुप में बदलाव, बिन मौसम बरसात, बर्फ की चोटियों का पिघलना, ओजोन परत में क्षरण, भयंकर तूफान, चक्रवात, बाढ़, सूखा आदि।


    (iv) अगर इस तरह से ग्लोबल वार्मिंग बढती रहेगी तो जो भी बर्फीले स्थान है वो पिघल कर अपना अस्तित्व खो देंगे। आजकल गर्मी और अधिक बढती जा रही है और सर्दियों में ठंड कम होती जा रही है। जब हम सर्वे को देखते हैं तो हमें पता चलता है कि पृथ्वी का तापमान धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है।


    (v) कार्बन-डाइऑक्साइड गैस के बढने की वजह से कैंसर जैसी बीमारी हो सकती है।


    (vi) ग्लोबल वार्मिंग की वजह से रेगिस्तान का विस्तार होने के साथ-साथ पशु-पक्षियों की कई प्रजातियाँ भी विलुप्त हो रही हैं।


    (vii) ग्लोबल वार्मिंग के अधिक बढने की वजह से आक्सीजन की मात्रा भी कम होती जा रही है जिसकी वजह से ओजोन परत कमजोर होती जा रही है।



    भूमंडलीय ऊष्मीकरण या ग्लोबल वॉर्मिंग के घातक परिणाम


    वायुमंडल के ताप को बढ़ाने वाले गैस ग्रीन हाउस गैस कहलाते है। वैज्ञानिकों के अनुसार इन गैसों का उत्सर्जन अगर इसी प्रकार चलता रहा तो 21वीं शताब्दी में पृथ्वी का तापमान 3 डिग्री से 8 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है।

    अगर ऐसा हुआ तो इसके परिणाम बहुत घातक होंगे। ग्लेशियर का हिमखंड पिघल जायेंगे, समुंद्र का जल स्तर बढ़ जायेगा। जिससे पृथ्वी के कई हिस्से जल मग्न हो जायेगा। 


    यह तबाही किसी विश्व युद्ध या भूकंप या बाढ़ से होने वाले तबाही से कई गुणा ज्यादा होगा।


    भूमंडलीय ऊष्मीकरण या ग्लोबल वॉर्मिंग के रोकथाम के उपाय


    1. लोगों के बीच जागरूकता अभियान चलाना। इसके लिए सरकारी एजेंसियों, व्यापारिक नेतृत्व, निजी क्षेत्रों और एनजीओ आदि का सहयोग लेना चाहिए | जागरूकता के अभियान का काम किसी भी एक राष्ट्र के करने से नहीं होगा इस काम को हर राष्ट्र के द्वारा करना जरूरी है।

    2. वाहनों और उद्योगों से निकलने वाले हानिकारक गैसों के समाधान खोजने चाहिए जिससे ग्लोबल वार्मिंग को कम किया जा सके।

    3. प्रदुषण करने वाले वाहन की गहन जाँच हो और जरुरत हो तो वैसे वाहन पर प्रतिबन्ध लगाने चाहिए।

    4. घर और ऑफिस में कम-से-कम एयर-कंडीशनर का प्रयोग करना चाहिए। एयर-कंडीशनर से निकलने वाली CFC गैसें वायुमंडल को गर्म करती हैं।

    5. पेड़ों की कटाई को रोककर अधिक-से-अधिक पेड़ लगाने चाहिए।

    6. अधिक ऊर्जा खपत करने वाले बल्ब की जगह LED का प्रयोग करना चाहिए।

    7. जिन वस्तुओं को नष्ट नहीं किया जा सकता हैं उन्हें रिसाइक्लिंग की सहायता से दुबारा प्रयोग में लाना चाहिए।

    8. बिजली के साधनों का जरुरत के हिसाब से  प्रयोग करना चाहिए।

    9. पैकिंग करने वाले प्लास्टिक के साधनों का कम प्रयोग करना चाहिए।

    10. ऊर्जा के नवीकरणीय श्रोत का उपयोग करना चाहिए।

    11. परम्परागत चुल्हा की जगह गैस चूल्हा का प्रयोग करें।

    12. जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण किया जाना चाहिए।

    13. खुले वातावरण में कचड़ा जलाने पर रोक।

    14. कारपूल सिस्टम का अपनाना चाहिए।

    15. निजी वाहनों की अपेक्षा पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करना।



    भूमंडलीय ऊष्मीकरण या ग्लोबल वॉर्मिंग के प्रति जागरूकता


    ग्लोबल वार्मिंग की समस्या को गंभीरता से लेते हुए सभी देशों को एक-जुट हो कर कानून पारित करना चाहिए। लोगों को इसके परिणामों से अवगत करवाने के लिए सेमीनार करवाने चाहिए, जगह जगह विज्ञापन लगाने चाहिए ताकि सभी व्यक्ति इसके घातक परिणामों को जान सके और जागरूक हो सके। ये समस्या किसी एक की नहीं है बल्कि उन सभी की हैं जो धरती पर सांस ले रहे हैं।

    ग्लोबल वार्मिंग को रोकने का कोई इलाज नहीं है। इसके बारे में सिर्फ जागरूकता फैलाकर ही इससे लड़ा जा सकता है। हमें अपनी पृथ्वी को सही मायनों में ‘ग्रीन’ बनाना होगा। अपने ‘कार्बन फुटप्रिंट्स’(प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन को मापने का पैमाना) को कम करने के लिए जनसंख्या को बढ़ने से रोकना होगा। हम अपने आस-पास के वातावरण को प्रदूषण से जितना मुक्त रखेंगे, इस पृथ्वी को बचाने में उतनी ही बड़ी भूमिका निभाएँगे।


    उपसंहार


    सारी समस्याओं का जन्मदाता मानव है। अतः ग्लोबल वार्मिंग भी मानव द्वारा उत्पन्न अनेक समस्याओं में से एक है। अगर इसे रोकने का समाधान मानव ने नहीं किया तो इसके भयंकर परिणाम के लिए तैयार रहना होगा। ऐसा न हो की पृथ्वी का स्तित्व  ही नष्ट हो जाये। जिस तरह डायानासोर का स्तित्व इतिहास के पन्नों में दफ़न हो गया है और बहुत सी प्रजातियाँ दफ़न होने की कगार पर है, अगर यही स्थिति बनी रही तो मानव भी इतिहास के पन्नों की शोभा बढाता मिलेगा। इसलिए हम मानवों को सामंजस्य, बुद्धि और एकता के साथ मिलकर इसके बारे में सोचना चाहिए या फिर कोई उपाय ढूँढना अनिवार्य है। 

    जो ऑक्सीजन हमारी प्राणस्वरूपा है उसी पर हमलोगों ने आत्मघाती चोट किया है। इसलिए तकनीकी और आर्थिक आराम से ज्यादा अच्छा प्राकृतिक सुधार जरूरी है। ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए जितने हो सकें उतने प्रयत्न ज़रूर करने चाहिए।

    वृक्षारोपण के लिए लोगों को प्रोत्साहित करना चाहिए, जिससे कार्बन-डाइऑक्साइड की मात्रा कम हो सके और प्रदूषण को कम किया जा सके।

    “हम हैं तो जग है, जग है तो हम है” इसी को चरितार्थ करता यह लेख।



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