'प्रदुषण' पर निबंध ( Essay on Pollution in Hindi )
प्रस्तावना :- आज के युग को देखते हुए हम कह सकते है की विज्ञान जितना हमारे लिए वरदान साबित हुआ है उतना ही अभिशाप भी। जितना हम आधुनिकता की ओर बढ़ रहे है उतना ही हम मानवता की बर्बादी की ओर भी बढ़ रहे है। मनुष्य की यह प्रकृति रही है की वह हमेशा प्राकृतिक से लेना चाहा है देना नहीं। और यही प्रवृति उसे विनाश की और ले जा रहा है। आज का यह बदलाव हमारे भविष्य में आने वाली युवा पीढ़ी को भुगतना होगा।
आधुनिकता के भागम भाग में जो हमे प्रदुषण रूपी अभिशाप मिल रहा है उसकी तरफ हमारी नजर ही नहीं जा रही है, या यह कहे की हम उससे नजरें चुरा रहे है। हम खुद में इतना आधुनिकता लाने में खोते जा रहे है कि खुद की वास्तिविकता धूमिल होती जा रही है। अतः हमारा हमेशा यह प्रयास होना चाहिए की प्राकृतिक का संतुलन बना रहे।
प्रदूषण के जिस वातावरण या पर्यावरण में मनुष्य साँस ले रहा है, वह दिन-ब-दिन खराब होता जा रहा है। स्थिति इतनी गंभीर बनी हुई है की जिधर नजर उठाये उधर ही प्रदुषण नजर आता है। कही वर्षा की कमी तो कही बाढ़ का प्रकोप है। कहीं अत्यधिक गर्मी सहन करनी पड़ रही है तो कहीं अत्यधिक ठंड।
प्राकृतिक ने हमेशा अपने सरल, मृदु, एवं सहयोगात्मक स्वभाव से मानवजाति का कल्याण किया है परन्तु हम मनुष्यों ने अपने क्रियाकलापों से उसे उग्र बना दिया है। जिसका परिणाम समस्त मानवजाति को भुगतना पड़ रहा है।
प्रदुषण का अर्थ :- प्रदुषण का शाब्दिक अर्थ 'गन्दा' या 'अपवित्र' होना है। सरल परिभाषा के अनुसार "प्रदूषण वायु, जल, और मिटटी के रासायनिक, भौतिक, और जैविक गुणों में होने वाला ऐसा परिवर्तन है जो समस्त जीवित जीवों के लिए हानिकारक है। जिसका प्रभाव समस्त जीवों पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से पड़ता है।
वायु प्रदुषण (Air Pollution essay in Hindi )
जल प्रदुषण (Water Pollution essay in Hindi)
भूमि प्रदुषण (Essay on Soil pollution in Hindi )
भूमि-प्रदूषण को परिभाषित करते हुए हम कह सकते हैं कि - “भूमि के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों में ऐसा कोई अवांछित परिवर्तन जिसका प्रभाव मनुष्य एवं अन्य जीवों पर पड़े या भूमि की प्राकृतिक गुणवत्ता तथा उपयोगिता नष्ट हो भूमि-प्रदूषण कहलाता है।”
पृथ्वी पर मात्र एक-चौथाई ही भूमि है जिसमे केवल मनुष्य के उपयोग लायक 280 लाख वर्ग मील ही उपलब्ध है। अतः इस भूमि की समुचित रख रखाव की जिम्मेदारी मनुष्यों की है। परन्तु आज की बढ़ती जनसंख्या से भूमि उपयोग में विविधता एवं सघनता आई है। परिणामस्वरूप ‘भूमि-प्रदूषण’ की समस्या का जन्म हुआ है जो आज विश्व के अनेक भागों में एक प्रमुख समस्या बन गई है। हम सभी जानते है की भूमि पर ही हम अपने जीविकापार्जन के सारे काम करते है जैसे फसल उगाना, कल-कारखाने की स्थापना इत्यादि। इस प्रक्रम में हम अपनी भूमि को लगातार प्रदूषित करते रह रहे है। चलिए जानते है की मानव कैसे भूमि प्रदूषित कर रहा है।
भूमि प्रदुषण कारण :- (i) घर, अस्पताल, स्कूल और बाजार में उपयोग की जाने वाली सामग्री में प्लास्टिक कंटेनर, डिब्बे, प्लास्टिक, इलेक्ट्रॉनिक सामान आदि पर उत्पन्न ठोस अपशिष्ट की श्रेणी में आते हैं। इनमें से कुछ बायोडिग्रेडेबल हैं और अन्य गैर-बायोडिग्रेडेबल हैं और निपटान के लिए कठिन हैं। यह गैर-बायोडिग्रेडेबल अपशिष्ट है जो बड़े भूमि प्रदूषण का कारण बनता है।
(ii) मानव की विभिन्न जरूरतों को पूरा करने के लिए जंगलों को तीव्र गति से काटा जा रहा है। मिट्टी के लिए पेड़ आवश्यक हैं क्योंकि वे विभिन्न आवश्यक पोषक तत्वों को बनाए रखने में मदद करते हैं। खनन, शहरीकरण और अन्य कारणों से पेड़ों को काटना भूमि प्रदूषण को बढ़ावा देने वाले कारक हैं।
(iii) रासायनिक अपशिष्ट का निपटान मुश्किल है। कीटनाशकों, कीटनाशकों और उर्वरकों से प्राप्त तरल और ठोस अपशिष्ट दोनों को या तो लैंडफिल या अन्य स्थानों पर फेंक दिया जाता है। यह मिट्टी को खराब करता है और भूमि प्रदूषण का एक और प्रकार बनाता है।
(iv) फसलों की अधिक उपज सुनिश्चित करने के लिए किसानों द्वारा इन दिनों कई उच्च अंत कृषि तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है। इन तकनीकों के अधिक उपयोग जैसे कि कीटनाशकों और कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग मिट्टी का क्षरण करता है। ऐसी जमीन में उगाए गए फल और सब्जियाँ भी स्वस्थ नहीं मानी जाती हैं। इसे एक प्रकार का भूमि प्रदूषण माना जाता है।
(v) घरों से फेंके जाने वाले टूटे काँच, प्लास्टिक, फर्नीचर और पॉलिथीन आदि स
(vi) उघोगो से निकलने वाले रसायनों से भी भूमि प्रदूषण होती है क्योंकि भारी धातु मिट्टी पर जमा हो जाती है और भूमि को दूषित करती है।
(vii) भूमि से खनिज तेलों को निकालने के लिए खुदाई के दौरान तेल कई बार जमीन पर गिर जाता है और मिट्टी को दूषित करता है।
(viii) बारिश के दौरान हवा में मौजुद दुषित पदार्थ जमीन पर आ जाते है और भूमि को दुषित करते है।
ध्वनि प्रदुषण (Essay on Sound Pollution in Hindi)
ध्वनि प्रदुषण भी अन्य प्रदुषण की तरह हानिकारक है। ध्वनि प्रदुषण मानसिक पीड़ा के साथ साथ शारीरिक पीड़ा का भी कारण है। आज जिस तरह से सड़कों पे यातायात के साधन बढे है, बड़े-बड़े कल-कारखाने स्थापित हुए है, उससे ध्वनि प्रदुषण भी चरम स्थिति पर पहुंच चुकी है। सड़कों पर निकालो तो गाड़ी के सीटी की आवाज कान के पर्दे हिला देती है। पार्टी में जाओ तो म्यूजिक सिस्टम दिल धड़का देता है। अगर यही स्थिति बनी रही तो एक समय आएगा की लोगों की सुनने की क्षमता घट जाएगी। यदि इसे रोकने के लिये नियमित और कठोर कदम नहीं उठाये गये तो ये भविष्य की पीढियों के लिये बहुत गंभीर समस्या बन जायेगा।
उच्च स्तर का ध्वनि प्रदूषण बहुत से मनुष्यों के व्यवहार में चिडचिड़पन लाता है विशेषरुप से रोगियों, वृद्धों और गर्भवति महिलाओं के व्यवहार में। अवांछित तेज आवाज बहरेपन और कान की अन्य जटिल समस्याओं जैसे, कान के पर्दों का खराब होना, कान में दर्द, आदि का कारण बनती है। कभी-कभी तेज आवाज में संगीत सुनने वालों को अच्छा लगता है, बल्कि अन्य लोगों को परेशान करता है।
ध्वनि प्रदुषण के कारण :- (1) औद्योगिकीकरण ने हमारे स्वास्थ्य और जीवन को खतरे पर रख दिया है क्योंकि सभी (बड़े या छोटे) उद्योग मशीनों का प्रयोग करते हैं जो बहुत ज्यादा मात्रा में तेज आवाज पैदा करती है। कारखानों और उद्योगों में प्रयोग होने वाले अन्य उपकरण (कम्प्रेशर, जेनरेटर, गर्मी निकालने वाले पंखे, मिल) भी बहुत शोर उत्पन्न करते हैं।
(2) सामान्य सामाजिक उत्सव जैसे शादी, पार्टी, पब, क्लब, डिस्क, या पूजा स्थल के स्थान मन्दिर, मस्जिद, आदि आवासीय इलाकों में शोर उत्पन्न करते हैं।
(3) शहरों में बढ़ते हुए यातायात के साधन (बाइक, हवाई जहाज, अंडर ग्राउंड ट्रेन आदि) तेज शोर का निर्माण करते हैं।
(4) सामान्य निर्माणी गतिविधियाँ (जिसमें खानों, पुलों, भवनों, बांधो, स्टेशनों, आदि का निर्माण शामिल है), जिसमें बड़े यंत्र शामिल होते हैं उच्च स्तर का शोर उत्पन्न करते हैं।
(5) दैनिक जीवन में घरेलू उपकरणों का उपयोग ध्वनि प्रदूषण का मुख्य कारण है।
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